Thursday, December 21, 2017

कांचीपुरम मंदिर Kanchi Kailasanathar Temple Tamilnadu

कांचीपुरम मंदिर

कांचीपुरम, साड़ियों के अलावा एक और चीज़ के लिए पहचाना जाता है. वो है यहां पर मौजूद हजारों मंदिर, जिसकी वजह से इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है.

कांचीपुरम – कैलाशनाथ का मंदिर.

भारत में सतवाहन राज वंश की शक्ति क्षीण होनेपर   दक्षिण में पल्लवों के रूप में एक नयी शक्ति का उदय हुआ. इनके साम्राज्य में पूरा आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु का उत्तरी भाग शामिल था. इन्होने कांचीपुरम को अपनी राजधानी बनायीं और ४ थी से ९ वीं सदी तक राज किया. परन्तु इस पूरी अवधि में उत्तर के चालुक्यों एवं दक्षिण के चोल तथा पंडय राजाओं से वे संघर्षरत रहे. पल्लवों के काल में वास्तुकला, साहित्य एवं संगीत के क्षेत्र में अप्रतिम प्रगति हुई. दक्षिण पूर्व एशिया  में भारतीय संस्कृति के उन्नयन में पल्लवों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. इन्हीं के काल में कांचीपुरम भी तमिल, तेलुगु एवं संस्कृत की शिक्षा का एक बड़ा केंद्र बना. प्रारंभिक पल्लव अपने आपको ब्रह्म क्षत्रिय कहलाना पसंद करते थे. अर्थात ब्राह्मण  जिन्होंने शस्त्र धारण किया.  लेकिन कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि संभवतः इनका सम्बन्ध इरान के पहल्वों से था जो कृष्णा नदी के मैदानी भाग में कभी आ बसे होंगे. ५००  वर्षों  के उनके राजकाल में वैसे तो कई प्रतापी शासक हुए परन्तु साम्राज्य को उंचाईयों में पहुँचाने का काम महेन्द्रवर्मन १ (५७१ – ६३० ईसवी) एवं नरसिम्हवर्मन  १ (६३० – ६६८ ईसवी) ने किया.
मंदिरों के स्थापत्य कला के दृष्टिकोण से पल्लवों का काल महत्वपूर्ण रहा है. उस काल के स्थापत्य के दो स्वरुप दिखते हैं.प्रारंभ के निर्माण चट्टानों को तराश कर बनाये गए मंदिर आदि हैं. इसका सर्वोत्तम उदाहरण महाबलीपुरम में दृष्टिगोचर होता है. जिनकी कालावधि ६१० – ६९० ईसवी के बीच आंकी गयी है. वहीँ संरचनात्मक मंदिरों का निर्माण सन ६९० के बाद दिखाई पड़ता है. इस काल के लगभग सभी मंदिरों में मुख्य प्रतिष्ठा भगवन शिव की रही है.
कांचीपुरम चेन्नई बंगलूरु मुख्य मार्ग पर चेन्नई से लगभग ७६ किलोमीटर की दूरी पर है. यह नगर भारत के प्राचीनतम  ७ नगरों में एक है.  ३ – २ री  सदी ईसा पूर्व भी इस नगर के अस्तित्व में होने के प्रमाण तत्कालीन बौद्ध साहित्य में मिलते हैं. यहाँ पर १००० मंदिरों के होने की बात कही गयी है. यहाँ के प्रमुख मंदिरों में प्राचीनतम “कैलाशनाथ” या तामिल में कहें तो कैलाशनाथर (“जी” के एवज में है “र”)  का मंदिर है. यह मंदिर शहर से लगभग २ किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में है और वहां जाने के लिए ऑटो या टेक्सी आसानी से मिल जाता है. इस मंदिर को नरसिम्हवर्मन II, जो राजसिम्हा के नाम से भी जाना जाता था, के द्वारा ८ वीं सदी के पूर्वार्ध में अपनी पत्नी को प्रसन्न करने के लिए बनवाया गया था. मंदिर की दीवार में उत्कीर्ण ग्रन्थ लिपि के लेख में नरसिंहवर्मन   द्वारा ग्रहण किये गए विभिन्न उपाधियों का उल्लेख है. इस मंदिर की बनावट महाबलीपुरम के समुद्र तट पर बने  मंदिर से मेल खाती है, क्योंकि उसे  भी  राजसिम्हा के  द्वारा ही बनवाया गया था.
???????????????????????????????वैसे तो यह मंदिर भगवान् शिव को अर्पित है परन्तु विष्णु सहित अन्य  देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी मंदिर के गर्भ गृह के बाहर स्थापित हैं. गर्भ गृह का चक्कर लगाने के लिए एक संकीर्ण गलियारा है जिसका प्रवेश बिंदु जन्म और निकास मृत्यु का पर्याय माना जाता है. जितने अधिक बार आप प्रवेश कर बाहर निकलेंगे उतने ही आप मोक्ष के करीब पहुंचेंगे. यह मंदिर मूर्तियों का खजाना है  और सभी मूर्तियों की कलात्मकता बेजोड़ है. भगवान् शिव को ही ६४ विभिन्न भाव भंगिमाओं के साथ इसी एक मंदिर में देखा जा सकता है. इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि मंदिर चारों ओर से ५८ छोटे छोटे मंदिरों  से घिरा है जिनमें विभिन्न उप देवी/देवताओं को स्थान दिया गया है.
मंदिर के अन्दर परिक्रमा पथIMG_2143
स्थापत्य के दृष्टिकोण से इस मंदिर की महत्ता अतुलनीय है और लोग इसका रसास्वादन करने के लिए ही यहाँ आते है. एक धार्मिक स्थल के रूप में स्थानीय लोगों के बीच भी यह अधिक लोकप्रिय नहीं है अतः मंदिर में दर्शकों की भीड़ नहीं रहती. हाँ शिवरात्रि के दिन यह मंदिर अवश्य ही  विभिन्न आयोजनों का केंद्र बन जाता है.
कहते हैं कि महाप्रतापी चोल राजा, राजा राजा चोल  ने इस मंदिर के दर्शन किये थे. इस मंदिर से ही प्रेरणा लेकर तंजाऊर में भव्य ब्रिह्देश्वर के मंदिर का निर्माण करवाया था.

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