शंकराचार्य टेम्पल

शंकराचार्य मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के श्रीनगरशहर में डल झील के पास शंकराचार्य पर्वत पर स्थित है।
यह मंदिर समुद्र तल से 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।शंकराचार्य मंदिर को तख़्त-ए-सुलेमन के नाम से भी जाना जाता है।यह मंदिर कश्मीर स्थित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।इस मंदिर का निर्माण राजा गोपादात्य ने 371 ई. पूर्व में करवाया था।डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पँहुचने के लिए सीढ़ियाँ बनवाई थी।इस मंदिर की वास्तुकला भी काफ़ी ख़ूबसूरत है।शिव का यह मंदिर क़रीब दो सौ साल पुराना है।जगदगुरु शंकराचार्य अपनी भारत यात्रा के दौरान यहाँ आये थे।उनका साधना स्थल आज भी यहाँ बना हुआ है।लेकिन ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ से श्रीनगर और डल झील का बेहद ख़ूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है।
शंकराचार्य मंदिर, श्रीनगर में शहर की सतह पर समुद्र स्तर से 1100 फुट की ऊंचाई पर स्थित है जिसे तख्त - ए - सुलेमान के नाम से भी जाना जाता है जो एक हिल पर स्थित है। यह मंदिर, हिंदू धर्म के देवता भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को 371 ई. पूर्व राजा गोपादत्य ने बनवाया था, जिसके बाद मंदिर का नाम राजा के नाम पर ही रखा गया था। यह कश्मीर की घाटी में स्थित सबसे पुराना मंदिर है। बाद में मंदिर का नाम बदलकर गोपादारी से शंकराचार्य कर दिया गया था क्योकि आदि शंकराचार्य, इस स्थान पर कश्मीर यात्रा के दौरान ठहरे थे। कुछ समय पश्चात, डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर में पत्थर की सीढ़ियों का निर्माण करवा दिया था। इस मंदिर का विद्युतीकरण 1925 में कर दिया गया था। हिंदुओं का एक धार्मिक स्थल होने के अलावा यह मंदिर महान पुरातात्विक महत्व भी रखता है।
शंकराचार्य मंदिर, श्रीनगर में शहर की सतह पर समुद्र स्तर से 1100 फुट की ऊंचाई पर स्थित है जिसे तख्त - ए - सुलेमान के नाम से भी जाना जाता है जो एक हिल पर स्थित है। यह मंदिर, हिंदू धर्म के देवता भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को 371 ई. पूर्व राजा गोपादत्य ने बनवाया था, जिसके बाद मंदिर का नाम राजा के नाम पर ही रखा गया था। यह कश्मीर की घाटी में स्थित सबसे पुराना मंदिर है। बाद में मंदिर का नाम बदलकर गोपादारी से शंकराचार्य कर दिया गया था क्योकि आदि शंकराचार्य, इस स्थान पर कश्मीर यात्रा के दौरान ठहरे थे। कुछ समय पश्चात, डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर में पत्थर की सीढ़ियों का निर्माण करवा दिया था। इस मंदिर का विद्युतीकरण 1925 में कर दिया गया था। हिंदुओं का एक धार्मिक स्थल होने के अलावा यह मंदिर महान पुरातात्विक महत्व भी रखता है।
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