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Thursday, December 21, 2017

Ranakpur Temple - Udaipur

रणकपुर मंदिर
उदयपुर और जोधपुर के बीच पाली डिस्ट्रिक्ट में गांव रणकपुर में यह मंदिर स्थित है जिसे जैन धर्म के 5 पवित्र स्थलों में शुमार किया जाता है.
यह पूरा मंदिर हल्के सफ़ेद रंग के मार्बल से बना हुआ है. जिसमें 1400 नक्काशी किये हुए पिलर लगे हुए हैं. यह मंदिर केवल प्राक्रतिक रौशनी का ही इस्तेमाल करता है, जिससे आध्यात्म में मदद मिलती है.



Ranakpur Temples are acclaimed world-wide for their intricate and superb architectural style. These temples form one of the five major pilgrimages of the Jains. Located in village of Ranakpur near Sadri town in the Pali district of Rajasthan, Ranakpur temple lies at a distance of 95 kms in the north of Udaipur city. The temple is easily accessible from the city of Udaipur as regular buses are easily available. Built in the 15th century, Ranakpur temples are known for being the largest and most important temples of the Jain cult. 

The temple is said to have been built by Seth Dharna Sah (a Jain businessman) with the aid of Rana Kumbha, who ruled Mewar in the 15th century. Ranakpur got its name after the name of the Rajput Monarch and likewise the temples. The temple complex is positioned in an isolated valley on the western side of the Aravalli Range. The Jain Temples of Ranakpur are certainly creditable for their splendid architecture. This temple is wholly constructed in light colored marble and comprises a basement covering an area of 48000 sq feet. There are more than 1400 exquisitely carved pillars that support the temple. 

In the complex, there are several temples including Chaumukha temple, Parsavanath temple, Amba Mata Temple and Surya Temple. Amongst all of them, Chaumukha Temple is the most important and as the term Chaumukha suggests, this temple is four-faced. Chaumukha temple is dedicated to Lord Adinath, who is the first 'Tirthankara' of the Jains. The Temple structure is highly compound having four different doorways to get into the chambers. These chambers ultimately take you to the main hall where the image of Adinath is positioned. 

The four faced image also symbolizes the Tirthankara's quest for the four directions and ultimately the cosmos. The image is surrounded by many small shrines and domes. One more range of cells with separate roofs encircles these shrines and domes all over again. The five spires elevate above the walls and around 20 cupolas rise from roof of the pillared hall. Each spire houses a shrine and the largest shrine is the important one that addresses the central altar. The temple ceilings are festooned with foliate scrollwork and geometric patterns. 

The temple is a masterpiece of architecture and boasts of not less than four additional shrines. It has 24 pillared halls with 80 domes that are supported by 400 columns. The upper and lower parts of the domes are linked by brackets that have deities' sculptures. Above all, you would be amazed to see at a height of 45 feet engraved nymphs playing the flute in various dance postures. Each column is intricately carved and it is surprising to know that no two columns have the similar design.

Apart from this, another stunning act about these columns is that they change their color from golden to pale blue after every hour during the day. In the mandap (prayer hall), the two big bells of 108 kg each produce a harmonious sound on the movement. Chaumukha temple is formed like a Nalinigulm Vimana (heavenly aircraft) and provides this whole structure a celestial appearance. Conceivably, it is due to the intricacy of the structure that the temple took approximately 65 years to complete. 

The Temple of Parsavanath is another attraction that is worth visiting. Built in the mid 15th century, the temple is renowned for its engraved windows embellished with Jain figures. Parsavanath Temple is also known as Patriyon Ka Mandir. In close proximity to this temple, you can trace two other temples dedicated to Neminath (22nd saint) and Surya Narayan (Sun God) respectively. Here, Surya Narayan Temple has innumerable wall projections with circular structure. The sight of Lord Surya driven in his chariot of seven horses is truly pleasing. 

Ranakpur Temple was also nominated amongst the top 77 wonders, while deciding for new Seven Wonders of the World. However, number of wonders cannot be increased and some or the other would come amongst the top seven, still Ranakpur Temple is undoubtedly a wonder. If you are on a trip to Udaipur, don't miss this artistic temple that would become an unforgettable part of your beautiful memories.



Wednesday, December 20, 2017

राजस्थान के प्रमुख मंदिर




राजस्थान के प्रमुख मंदिर




यहाँ पर किसी भी मंदिर की जानकारी पोस्ट कर सकते हैं


तनोट माता
तनोट, राजस्थान में मंदिर



तनोट माता का मंदिर जैसलमेर से करीब 130 किलो मीटर दूर भारत – पाकिस्तान बॉर्डर के निकट स्थित है। यह मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है। वैसे तो यह मंदिर सदैव ही आस्था का केंद्र रहा है पर 1965 कि भारत – पाकिस्तान लड़ाई के बाद यह मंदिर देश – विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रशिद्ध हो गया। 1965 कि लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके, यहाँ तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तो के दर्शन के लिए रखे हुए है।
1965 कि लड़ाई के बाद इस मंदिर का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल ( BSF ) ने ले लिया और यहाँ अपनी एक चोकी भी बना ली। इतना ही नहीं एक बार फिर 4 दिसंबर 1971 कि रात को पंजाब रेजिमेंट और सीमा सुरक्षा बल कि एक कंपनी ने माँ कि कृपा से लोंगेवाला में पाकिस्तान कि पूरी टैंक रेजिमेंट को धूल चटा दी थी और लोंगेवाला को पाकिस्तानी टैंको का कब्रिस्तान बना दिया था। लोंगेवाला भी तनोट माता के पास ही है।लोंगेवाला कि विजय के बाद मंदिर परिदसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया गया जहा अब हर वर्ष 16 दिसंबर को सैनिको कि याद में उत्सव मनाया जाता है।
तनोट माता को आवड माता के नाम से भी जाना जाता है तथा यह हिंगलाज माता का ही एक रूप है। हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है। हर वर्ष आश्विन और चै‍त्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।




किराड़ू का मंदिर
सिहनी, राजस्थान में मंदिर





किराडू राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है। किराडू अपने मंदिरों कि शिल्पकला के लिया विख्यात है। इन मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। किराडू को राजस्थान का खजुराहों भी कहा जाता है। लेकिन किराडू को खजुराहो जैसी ख्याति नहीं मिल पाई क्योकि यह जगह पिछले 900 सालों से वीरान है और आज भी यहां पर दिन में कुछ चहल-पहल रहती है पर शाम होते ही यह जगह वीरान हो जाती है, सूर्यास्त के बाद यहां पर कोई भी नहीं रूकता है।

राजस्थान के इतिहासकारों के अनुसार, किराडू शहर अपने समय में सुख सुविधाओं से युक्त एक विकसित प्रदेश था। दूसरे प्रदेशों के लोग यहां पर व्यापार करने आते थे। लेकिन 12वीं शताब्दी में, जब यहां पर परमार वंश का राज था, यह शहर वीरान हो गया। आखिर ऐसा क्यों होता है, इसकी कोई पुख्ता जानकारी तो इतिहास में उपलब्ध नहीं है पर इसको लेकर एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है।





श्री हनुमान बालाजी मंदिर मेहंदीपुर
मीना सीमला, राजस्थान में मंदिर




बालाजी महाराज यहाँ स्वंम विराजमान है।
तमाम कष्ट और रोग यहाँ बाबा के दर्शन एवं स्मरण मात्र से कट जाते है।श्री बालाजी धाम मेंदीपुर में कई हजारों की संख्या में लोग प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं एवं सुख समृद्धि लेकर जाते हैं।यहाँ नास्तिक भी आस्तिक बन जाता हे इस धाम की महिमा ही कुछ ऐसी हैं।

परन्तु यहाँ मंदिर में कोई व्यवस्था नहीं है,चाहे साफ सफाई की बात हो या अनुशासन की या फिर सावर्जनिक सुविधा की जैसे सौचालय, प्याऊ ,चिकित्सा आदि ।
गन्दगी का आलम यह हैं कि सारा मंदिर परिसर सड़ा पड़ा हैं ,गटर का पानी बहता रहता हैं, मंदिर परिसर में कचरा पड़ा रहता हैं मानो कभी सफाई हुई ही ना हो।सौचालय का कोई प्रबन्ध नहीं हैं। सुवर अदि घूमते नज़र आ जायेंगे आपको यहां।



सालासर बालाजी
राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है।


सालासर बालाजी भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है। वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है


ब्रह्मा मन्दिर, पुष्कर
पुष्कर, राजस्थान में मंदिर



यह प्राचीन मंदिर तीर्थराज पुष्कर झील के पास स्थित है तथा ऐसी मान्यता है कि जब तक यहां की यात्रा नही कर ली जाती अन्य तीर्थ यात्राओं का लाभ प्राप्त नही होता। इसलिए प्रत्येक हिन्दू को अपने जीवन मे कम से कम एकबार पुष्कर झील में स्नान कर ब्रह्माजी के दर्शन अवश्य करने चाहिए।




बाबा रामदेव मंदिर
रामदेवरा, राजस्थान में मंदिर



बाबा के जन्म स्थान के बारे में भी तुंवरावटी, दिल्ली, ऊंडू- काहमीर, पोकरण, रूणीचा आदि स्थानों के बारे में उल्लेख है। डॉ. बिश्नोई ने 'बात रामदेव तंवर री' और 'बात तुंवरां री' के हवाले से लिखा है कि रामदेवजी के पिता पश्चिमी राजस्थान की तरफ वांरूछाह (छाहण-बारू) आए। यहां पंपजी धोरधांर बुध गौत्र के भाटी राजपूत की जागीरी थी। पंपजी ने अपनी पुत्री मैणादे का विवाह अजमालजी से किया। अजमालजी पोकरण से कुछ मील दूर रहे, जहां वीरमदेवजी का जन्म हुआ। यहां से थोड़ी दूर 'रूणीचा' नामक कुएं के पास डेरा दिया। यहां रामदेवजी का अवतरण माना जाता है। इसे 'रामडेरौ' और रामदेवरा कहा जाने लगा। भैरव राक्षस के वध के लिए भी रामदेवजी ने 'रूणीचा' से ही चढ़ाई की थी। रामदेवजी के विवाह के लिए भी नारियल 'रूणीचे' में भेजा गया था।






ओम बन्ना मंदिर
ओम बन्ना एक पवित्र दर्शनीय स्थल है जो पाली जिले में स्थित है






श्री ऊ बन्ना (बुलेट बाबा) कथा
30/07/2017
विविधताओं से भरे हमारे देश में देवताओं, इंसानों, पशुओं, पक्षियों व पेड़ों की पूजा अर्चना तो आम बात है लेकिन हम यहाँ एक ऐसे स्थान की चर्चा करने जा रहा है जहाँ इन्सान की मौत के बाद उसकी पूजा के साथ ही साथ उसकी बुलेट मोटर साईकिल की भी पूजा होती है और बाकायदा लोग उस मोटर साईकिल से भी मन्नत मांगते है।

जी हाँ ! इस चमत्कारी मोटर साईकिल ने आज से लगभग 21 साल पहले सिर्फ स्थानीय लोगों को ही नहीं बल्कि सम्बंधित पुलिस थाने के पुलिस वालों को भी चमत्कार दिखा आश्चर्यचकित कर दिया था और यही कारण है कि आज भी इस थाने में नई नियुक्ति पर आने वाला हर पुलिस कर्मी ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले यहाँ मत्था टेकने जरुर आता है।

जोधपुर अहमदाबाद राष्ट्रिय राजमार्ग पर जोधपुर से पाली जाते वक्त पाली से लगभग 20 km पहले रोहिट थाने का " दुर्घटना संभावित" क्षेत्र का बोर्ड लगा दिखता है और उससे कुछ दूर जाते ही सड़क के किनारे जंगल में लगभग 30 से 40 प्रसाद व पूजा अर्चना के सामान से सजी दुकाने दिखाई देती है और साथ ही नजर आता है भीड़ से घिरा एक चबूतरा जिस पर एक बड़ी सी फोटो लगी,और हर वक्त जलती ज्योत। और चबूतरे के पास ही नजर आती है एक फूल मालाओं से लदी बुलेट मोटर साईकिल। यह वही स्थान है और वही मोटर साईकिल जिसका में परिचय करने जा रहा हूँ
यह "ओम बना" का स्थान है ओम बना (ओम सिंह राठौड़) पाली शहर के पास ही स्थित चोटिला गांव के ठाकुर जोग सिंह जी राठौड़ के पुत्र थे जिनका इसी स्थान पर अपनी इसी बुलेट मोटर साईकिल पर जाते हुए 1988 में एक दुर्घटना में निधन हो गया था। स्थानीय लोगों के अनुसार इस स्थान पर हर रोज कोई न कोई वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाया करता था जिस पेड के पास ओम सिंह राठौड़ की दुर्घटना घटी उसी जगह पता नहीं कैसे कई वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाते यह रहस्य ही बना रहता था । कई लोग यहाँ दुर्घटना के शिकार बन अपनी जान गँवा चुके थे ।

ओम सिंह राठोड की दुर्घटना में मृत्यु के बाद पुलिस ने अपनी कार्यवाही के तहत उनकी इस मोटर साईकिल को थाने लाकर बंद कर दिया लेकिन दुसरे दिन सुबह ही थाने से मोटर साईकिल गायब देखकर पुलिस कर्मी हैरान थे आखिर तलाश करने पर मोटर साईकिल वही दुर्घटना स्थल पर ही पाई गई, पुलिस कर्मी दुबारा मोटर साईकिल थाने लाये लेकिन हर बार सुबह मोटर साईकिल थाने से रात के समय गायब हो दुर्घटना स्थल पर ही अपने आप पहुँच जाती । आखिर पुलिस कर्मियों व ओम सिंह के पिता ने ओम सिंह की मृत आत्मा की यही इच्छा समझ उस मोटर साईकिल को उसी पेड के पास छाया बना कर रख दिया। इस चमत्कार के बाद रात्रि में वाहन चालको को ओम सिंह अक्सर वाहनों को दुर्घटना से बचाने के उपाय करते व चालकों को रात्रि में दुर्घटना से सावधान करते दिखाई देने लगे । वे उस दुर्घटना संभावित जगह तक पहुँचने वाले वाहन को जबरदस्ती रोक देते या धीरे कर देते ताकि उनकी तरह कोई और वाहन चालक असामयिक मौत का शिकार न बने । और उसके बाद आज तक वहाँ दुबारा कोई दूसरी दुर्घटना नहीं हुयी।

ओम सिंह राठौड़ के मरने के बाद भी उनकी आत्मा द्वारा इस तरह का नेक काम करते देखे जाने पर वाहन चालको व स्थानीय लोगों में उनके प्रति श्रधा बढ़ती गयी और इसी श्रधा का नतीजा है कि ओम बना के इस स्थान पर हर वक्त उनकी पूजा अर्चना करने वालों की भीड़ लगी रहती है उस राजमार्ग से गुजरने वाला हर वाहन यहाँ रुक कर ओम बना को नमन कर ही आगे बढ़ता है और दूर दूर से लोग उनके स्थान पर आकर उनमे अपनी श्रद्धा प्रकट कर उनसे व उनकी मोटर साईकिल से मन्नत मांगते है ।  मुझे भी कोई दो साल पहले अहमदबाद से जोधपुर सड़क मार्ग से आते वक्त व कुछ समय बाद एक राष्ट्रिय चैनल पर इस स्थान के बारे प्रसारित एक प्रोग्राम के माध्यम से ये सारी जानकारी मिली और इस बार की जोधपुर यात्रा के दौरान यहाँ दुबारा जाने का मौका मिला तो सोचा क्यों न आपको भी इस निराले स्थान के बारे में अवगत करा दिया जाये ।






काशीराम मंदिर


पिण्डवाड़ा, राजस्थान


कांशीराम (१५ मार्च १९३४ – ९ अक्टूबर २००६) भारतीय राजनीतिज्ञ 
और समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय वर्ण व्यवस्था में 
अछूतों और दलितों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए 
कार्य किया। इसके अन्त में उन्होंने दलित शोषित संघर्ष 
समिति (डीएसएसएसएस), १९७१ में अखिल भारतीय पिछड़ा और 
अल्पसंख्यक समुदायों कर्मचारी महासंघ (बामसेफ) और १९८४ में 
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की।




सांवरियाजी मंदिर
भादसोड़ा, राजस्थान में मंदिर



यह बहुत ही चमत्कारी मंदिर है।यहाँ के बारे मैं यह कहा जाता हैं कि कोई भी मनोकामना की पूर्ति हेतु एक निश्चित राशि का चढ़ावा बोलने पर आप की कामना पूरी हो जाती है।
यानी सीधे तौर पर यहा बिना चढ़ावे की कोई काम नही होता है।ऐसी मान्यता है।
इन्ही तस्करो का भगवान भी कहा जाता है।
अगर। किसी का कोई काम नही हो रहा है वो एक बार यहां आकर बोलमा करदे अवश्य ही पूरी होगी
जय सांवरिया सेठ
सेठ तो सांवरिया है बाकी सब फ़क़ीर



मीरा मंदिर
चित्तौड़गढ़, राजस्थान में मंदिर














यह मीरा बाई का प्रसिद्ध मंदिर हैं।
मीरा बाई यहाँ पर भगवान कृष्ण की आराधना करती थी।
मीराबाई की शादी चित्तोड़ मैं राणा रतन सिंह जी से हुई थी ।शादी के बाद भी मीराबाई का मन सांसारिक जीवन मे नहीं लगता था और वो हमेशा कृष्ण भक्ति में लीन होकर अपने आप को कृष्ण को समर्पित कर दिया था।
मीराबाई का शरीर कहाँ गया आजतक ये पहेली बना हुआ है।कहते है कि मीराबाई यही पर शरीर सहित कृष्ण मूर्ती मैं समाहित हो गई थी।
उनको कई बार कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ा था।
एक बार राणा जी ने मीरा बाई को मारने के लिये ज़हर का प्याला भेजा था, मीराबाई ने भगवान का नाम लेकर पूरा ज़हर का प्याला पी गई।उनको कुछ नहीं हुआ।






जैन मंदिर
जयपुर, राजस्थान में जैन मंदिर





यहां शानदार युग की परंपरागत वास्तुकला आधुनिक प्रबंधन के नौसिखय तरीके से मिलता है।




बाबा मोहन राम मंदिर
भिवाड़ी, राजस्थान में मंदिर







मोहन मोहन बाबा कोड अंतर्यामी है यह बाबा बहुत अद्भुत बाबा है जो इस बाबा के दर्शन करने जाएगा उसकी हर मनोकामना पूरी होगी यह बाबा हमारे भगवान है किसी भाई को भी कुछ कोई परेशानी हो इस बाबा के जाकर दर्शन करें उनकी



श्री रानी सती दादी मंदिर


Jhunjhunu, Rajasthan





कलियुग में सत की सब से बड़ी कमी है, उसे मिटने ही शक्ति का अवतार धारण कर, लोगों को सही और उचित मार्ग दर्शन हेतु प्रकट हुआ





जगदीश मंदिर, उदयपुर
उदयपुर, राजस्थान में मंदिर







जगदीश मंदिर, पहले जगन्नाथ राय के मंदिर के रूप में जाना जाता था, उदयपुर में सिटी पैलेस का एक प्रमुख हिस्सा है। मंदिर हिंदू भगवान विष्णु को समर्पित है और शहर के सबसे बड़े मंदिर के रूप में माना जाता है। इंडो - आर्यन स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता यह मन्दिर उदयपुर के महाराणा जगत सिंह द्वारा 1651 में बनाया गया था। मंदिर में प्रतिष्ठापित चार हाथ वाली विष्णु की छवि काले पत्थर से बनी है।

यह शानदार नक़्क़ाशीदार खंभों, चित्रित दीवारों और सजाये गये छत के साथ एक तीन मंजिला संरचना है। पहली और दूसरी मंजिल पर 50 खम्भे हैं। मंदिर के शीर्ष की ऊंचाई 79 फुट है जिसपर हाथियों और सवारों के साथ संगीतकारों और नर्तकियों की प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। गरुड़ की छवि (आधा आदमी और आधा चील) भगवान विष्णु के द्वार की रक्षा करता है।

यहाँ चार अन्य धार्मिक स्थल हैं जो जगदीश मंदिर निकटता में स्थित हैं, ये सूर्य भगवान, भगवान गणेश, भगवान शिव और

देवी शक्ति को समर्पित हैं।




दिलवाड़ा जैन मंदिर
माउंट आबू, राजस्थान में धार्मिक केंद्र




देलवाड़ा का अद्भूत कलात्मक सौंदर्य हमें दुसरी दुनिया में ले जाता है। शिल्प सौंदर्य का एक उत्कृष्ट नमूना हमें आबु के देलवाड़ा के जैन मन्दिरों में देखने को मिलता है। अहमदाबाद – दिल्ली मार्ग पर आबु रोड रेल्वे स्टेशन है। यह स्थान गुजरात – राजस्थान की सीमा पर है। रेल्वे स्टेशन से लगभग २३ कि.मी. दुरी पर शहर से ४ कि.मी. दूर आबू पहाड़ का अनन्य आकर्षण आम्रकुंजों में रमा हुआ देलवाड़ा है। आबु में विश्वविख्यात देलवाड़ा मन्दिर है। पूर्वकाल में लोग पगडण्डी या ऐसे कोई छोटे-मोटे रास्ते से ऊपर जाते थे अब पर्वत पर जाने के लिए अच्छी सड़क बनायी गयी है। पहाडो में टेढ़ा-मेढ़ा घूमता हुआ यह रास्ता आबु पर्वत तक ले जाता है। देलवाड़ा में कुल पांच जैन मन्दिर है। सारे विश्व में इतनी सुन्दर शिल्पकला का दूसरा मन्दिर नहीं है। विमलवसही मन्दिर का सबसे आकर्षक भाग रंगमंडप है। यह एक भव्य, खुला मंडप है, जिसमें ४८ कलायुक्त स्तम्भ है। प्रत्येक दो स्तंभ आपस में अलंकृत तोरणों द्वारा जुड़े हैं। मंडप के बीचोंबीच एक लटकता हुआ आकर्षक झुमका है। इसके बाद गोलाकार मालाओं में पशु-पक्षी, देवी-देवता इत्यादि बने हैं। इन मालाओं पर आधारित १६ स्तंभों पर १६ विद्या देवियों की मूर्तियां हैं। जिनके हाथों में विभिन्न अस्त्र-आयुध सुशोभित हैं। रंगमंडप के आसपास की छतों पर सरस्वतीदेवी, लक्ष्मीदेवी, भरत-बाहुबली के युद्ध का दृश्य, अयोध्या एवं तक्षशिला नगरी, राजदरबार का दृश्य आदि अलंकृत है। विमलवसही और लुणवसही इन दोनों मन्दिरों में काफी समानता है।

विमलवसही मन्दिर में मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान है और लुणवसही में मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान हैं। दोनो मन्दिरों में ५२ देरीयां हैं जिसमें तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं इन देरीयों के सामने बाहर जो प्रांगण है, वहां से प्रदक्षिणा शुरू होता है। प्रदक्षिणा के छतों पर आकर्षक शिल्पकला की गयी है। जैन तीर्थंकरों के चरित्र के कुछ जीवन प्रसंग, उनका पंचकल्याणक महोत्सव, फूल-पत्तियां, पशु-पक्षी, नाटक, संगीत आदि के सुन्दर शिल्प यहां पर है। दोनों मन्दिरों में हाथीशाला है, जिसमें संगमरमर के १०-१० हाथी हैं। भगवान की पूजा करने वाले जैनश्रावकों के लिए सुबह १२ बजे तक का समय रखा गया है। पर्यटकों के लिए श्रद्धा के ये द्वार दोपहर १२.०० से सायं ६.०० बजे तक खुले रहते हैं। लुणवसही मन्दिर के दायीं तरफ एक छोटे बगीचे में दादासाहब की पगलियां बनी हैं और बायी तरफ एक कीर्तिस्तंभ है, जो अधूरा-सा प्रतीत होता है। इनके अतिरिक्त दो और मन्दिर हैं। पहला पित्तलहर जो महाराणा सांगा के किलेदार भामाशाह ओसवाल ने १५वीं शताब्दी में बनवाया। मन्दिर में श्री आदिनाथ भगवान की धातू की विशाल मूर्ति है। दूसरा मन्दिर खरतरवसही है, जिसमें मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं। इस मन्दिर को शिल्पियों का मन्दिर भी कहते हैं। यहां का कारोबार देखने वाले मन्दिर की पेढ़ी का नाम सेठ कल्याणजी परमानंदजी पेढ़ी है। मन्दिर के बाहर सड़क की दूसरी ओर दो बड़ी धर्मशालाएं हैं, जहा यात्रियों की निवास की सभी सुविधा है। यात्रियों के लिये कुछ दूरी पर कुछ नये ब्लॉक भी बने हैं।



सुंधा माता मंदिर
 जालौर ज़िले के भीनमाल, सुंधा में स्थित है




बहुत ही बढ़िया जगह यहां का मंदिर का प्रशासन बहुत ही अच्छी तरह से सब जगह की निगरानी करता है दिन-प्रतिदिन बहुत ही बढ़िया सुविधा मिलती है मैं यहां साल में दो या तीन बार आता हूं जब आता हूं तब नया दिखने को मिलता है



































दिव्य दर्शन

ब्रज चैरासी कोसीय परिक्रमा मार्ग पर विभिन्न पड़ाव स्थलों पर 30 जनसुविधा केन्द्रों का निर्माण

  प्रस्तावना ब्रज क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण की जन्म व क्रीड़ा स्थली होने के कारण पर्यटन की दृष्टि से विश्व विख्यात है। यहाँ ...