पैदल :
श्रवणकुमार के माता-पिता अंधे थे। वे उनकी सेवा पूरी तत्परता से करते, किसी प्रकार का कष्ट न होने देते। एक बार माता-पिता ने तीर्थ यात्रा की इच्छा की। श्रवण कुमार ने काँवर बनाकर दोनों को उसमें बिठाया और उन्हें लेकर तीर्थ यात्रा को चल दिया। बहुत से तीर्थ करा लेने पर एक दिन अचानक उसके मन में यह भाव आये कि पिता-माता को पैदल क्यों न चलाया जाय? उसने काँवर जमीन पर रख दी और उन्हें पैदल चलने को कहा। वे चलने तो लगे पर उन्होंने साथ ही यह भी कहा-इस भूमि को जितनी जल्दी हो सके पार कर लेना चाहिए। वे तेजी से चलने लगे जब वह भूमि निकल गई तो श्रवणकुमार को माता-पिता की अवज्ञा करने का बड़ा पश्चाताप हुआ और उसने पैरों पड़ कर क्षमा माँगी तथा फिर काँवर में बिठा लिया।
उसके पिता ने कहा-पुत्र इसमें तुम्हारा दोष नहीं। उस भूमि पर किसी समय मय नामक एक असुर रहता था उसने जन्मते ही अपने ही पिता-माता को मार डाला था, उसी के संस्कार उस भूमि में अभी तक बने हुए हैं इसी से उस क्षेत्र में गुजरते हुए तुम्हें ऐसी बुद्धि उपजी।
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