Wednesday, December 27, 2017

सूर्य मंदिर, कोणार्क Konark Sun Temple History

ओड़िसा की पूरी डिस्ट्रिक्ट के पास है कोणार्क जो मंदिर के रूप में वास्तुकला का अद्भुत नमूना है. यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है. रथ के आकार में बने इस मंदिर में बारह पहिये हैं जिसे सात घोड़े खींचते हुए महसूस होते है.
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस मंदिर की खूबसूरती के बारे में कहा था की "यहां पत्थरों की भाषा इंसानों की भाषा को मात देती नज़र आती है".


Konark Sun Temple / कोणार्क सूर्य मंदिर 13 वी शताब्दी का सूर्य मंदिर है जो भारत के ओडिशा राज्य के कोणार्क में स्थित है. ऐसा माना जाता है की यह मंदिर पूर्वी गंगा साम्राज्य के महाराजा नरसिंहदेव 1 ने 1250 CE में बनवाया था. यह मंदिर बहोत बडे रथ के आकार में बना हुआ है, जिसमे कीमती धातुओ के पहिये, पिल्लर और दीवारे बनी है. मंदिर का मुख्य भाग आज विनाश की कगार पर है. आज यह मंदिर UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल है और साथ ही यह मंदिर भारत के 7 आश्चर्यो में भी शामिल है


.कोणार्क मंदिर का इतिहास – Konark Temple History In Hindi
भविष्य पुराण और साम्बा पुराण के अनुसार उस क्षेत्र में इस मंदिर के अलावा एक और सूर्य मंदिर था, जिसे 9 वी शताब्दी या उससे भी पहले देखा गया था. इन किताबो में मुंडीरा (कोणार्क), कलाप्रिय (मथुरा) और मुल्तान में भी सूर्य मंदिर बताये गए है.
धर्मग्रन्थ साम्बा के अनुसार, कृष्णा के बेटे को कुष्ट रोग का श्राप था. उन्हें ऋषि कटक ने इस श्राप से बचने के लिये सूरज भगवान की पूजा करने की सलाह दी. तभी साम्बा ने चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन के नजदीक 12 सालो तक कड़ी तपस्या की. दोनों ही वास्तविक कोणार्क मंदिर और मुल्तान मंदिर साम्बा की ही विशेषता दर्शाते है.
रीथ्रैअन सागर (पहली सदी CE) के पास एक बंदरगाह भी था जिसे कैनपरा कहा जाता था, और उसी को आज कोणार्क कहा जाता है.
जब कभी भी परंपरा, रीती-रिवाज और इतिहास की बात आती है तो भारत का हर एक मंदिर लोगो को आकर्षित करता है.
कोणार्क नाम विशेषतः कोना- किनारा और अर्क – सूर्य शब्द से बना है. यह पूरी और चक्रक्षेत्र के उत्तरी-पूर्वी किनारे पर बसा हुआ है.
कोणार्क मंदिर वास्तु-कला – Konark Temple
वैसे यह मंदिर असल में चंद्रभागा नदी के मुख में बनाया गया है लेकिन अब इसकी जलरेखा दिन ब दिन कम होती जा रही है. यह मंदिर विशेषतः सूरज भगवान के रथ के आकार में बनाया गया है. सुपरिष्कृत रूप से इस रथ में धातुओ से बने चक्कों की 12 जोड़िया है जो 3 मीटर चौड़ी है और जिसके सामने कुल 7 घोड़े (4 दाई तरफ और 3 बायीं तरह) है. इस मंदिर की रचना भी पारंपरिक कलिंगा प्रणाली के अनुसार ही की गयी है. और इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर या तरह बनाया गया है की सूरज की पहली किरण सीधे मंदिर के प्रवेश पर ही गिरे. खोंदालिट पत्थरो से ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था.
वास्तविक रूप से यह मंदिर एक पवित्र स्थान है, जो 229 फ़ीट (70 मी.) ऊँचा है. इतना ऊँचा होने की वजह से और 1837 में वहाँ विमान गिर जाने की वजह से मंदिर को थोड़ी बहोत क्षति भी पहोची. मंदिर में एक जगमोहन हॉल (ऑडियंस हॉल) भी है जो तक़रीबन 128 फ़ीट (30 मी.) लंबा है, और आज भी वह हॉल जैसा के वैसा ही है.
वर्तमान में इस मंदिर में और भी कई हॉल है जिसमे मुख्य रूप से नाट्य मंदिर और भोग मंडप शामिल है.
कोणार्क मंदिर अपनी कामोत्तेजक मूर्तिवश मैथुन के लिये भी जाना जाता है.
इस मंदिर के आस-पास 2 और विशाल मंदिर पाये गए है. जिसमे से एक महादेवी मंदिर जो कोणार्क मंदिर के प्रवेश द्वार के दक्षिण में है. ऐसा माना जाता है की महादेवी मंदिर सूरज भगवान की पत्नी का मंदिर है. इस मंदिर को 11 वी शताब्दी के अंत में खोजा गया था. कोणार्क मंदिर के पास का दूसरा मंदिर वैष्णव समुदाय का है. जिसमे बलराम, वराह और त्रिविक्रम की मुर्तिया स्थापित की गयी है, इसीलिये इसे वैष्णव मंदिर भी कहा जाता है. लेकिन दोनों ही मंदिर की मुलभुत मुर्तिया गायब है.
मंदिरो से गायब हुई बहोत सी मूर्तियो को कोणार्क आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम में देखा गया था.
सन डायल & टाइम –
मंदिर के पहिये धूपघड़ी का काम करते है जिसकी सहायता से हम दिन-रात दोनों ही समय सही समय का पता लगा सकते है.
आइये कोणार्क मंदिर की कुछ रोचक बातो के बारे में जानते है – Facts About Konark Temple
1. रथ के आकार का निर्माणकार्य-
कोणार्क मंदिर का निर्माण रथ के आकार में किया गया है जिसके कुल 24 पहिये है.
रथ के एक पहिये का डायमीटर 10 फ़ीट का है और रथ पर 7 घोड़े भी है.
2. यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट
आश्चर्यचकित प्राचीन निर्माण कला का अद्भुत कोणार्क मंदिर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल है. ये सम्मान पाने वाला ओडिशा राज्य का वह अकेला मंदिर है.
3. नश्वरता की शिक्षा –
कोणार्क मंदिर के प्रवेश भाग पर ही दो बड़े शेर बनाये गए है. जिसमे हर एक शेर को हाथी का विनाश करते हुए बताया गया है. और इंसानी शरीर के अंदर भी एक हाथी ही होता है.
उस दृश्य में शेर गर्व का और हाथी पैसो का प्रतिनिधित्व कर रहे है.
इंसानो की बहोत सी समस्याओ को उस एक दृअह्य में ही बताया गया है.
4. सूर्य भगवान को समर्पित –
मंदिर में सूर्य भगवान की पूजा की जाती है.
मंदिर का आकार एक विशाल रथ की तरह है और यह मंदिर अपनी विशेष कलाकृति और मंदिर निर्माण में हुए कीमती धातुओ के उपयोग के लिये जाना जाता है.
5. मंदिर के रथ के पहिये धुपघडी का काम करते है और सही समय बताते है
इस मंदिर का मुख्य आकर्षन रथ में बने 12 पहियो की जोड़ी है. ये पहिये को साधारण पहिये नही है क्योकि ये पहिये हमें सही समय बताते है, उन पहियो को धूपघड़ी भी कहा गया है.
कोई भी इंसान पहियो की परछाई से ही सही समय का अंदाज़ा लगा सकता है.
6. निर्माण के पीछे का विज्ञान
मंदिर में ऊपरी भाग में एक भारी चुंबक लगाया गया है और मंदिर के हर दो पत्थरो पर लोहे की प्लेट भी लगी है. चुंबक को इस कदर मंदिर में लगाया गया है की वे हवा में ही फिरते रहते है.
इस तरह का निर्माणकार्य भी लोगो के आकर्षण का मुख्य कारण है, लोग बड़ी दूर से यह देखने आते है.
7. काला पगोडा –
कोणार्क मंदिर को पहले समुद्र के किनारे बनाया जाना था लेकिन समंदर धीरे-धीरे कम होता गया और मंदिर भी समंदर के किनारे से थोडा दूर हो गया. और मंदिर के गहरे रंग के लिये इसे काला पगोडा कहा जाता है और नकारात्मक ऊर्जा को कम करने के लिये ओडिशा में इसका प्रयोग किया जाता है.
8. वसृशिल्पीय आश्चर्य-
कोणार्क मंदिर का हर एक टुकड़ा अपनेआप में ही विशेष है और लोगो को आकर्षित करता है.
इसीलिये कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के सात आश्चर्यो में से एक है.
9. किनारो पर किया गया निर्देशन-
हर दिन सुबह सूरज की पहली किरण नाट्य मंदिर से होकर मंदिर के मध्य भाग पर आती है. उपनिवेश के समय ब्रिटिशो ने चुम्बकीय धातु हासिल करने क्व लिये चुंबक निकाल दिया था.












Tuesday, December 26, 2017

Chalisa

Ganesh Chalisa,गणेश चालीसा





भगवान श्री गणेश हिन्दू धर्म में प्रथम पूजनीय माने जाते हैं। विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा हर शुभ कार्य के आरंभ में की जाती है, जिसे सारे कार्य सूख पूर्वक संपन्न हो जाते हैं। माना जाता है कि श्री गणेश की आराधना करने से घर में खुशहाली, व्यापार में बरकत तथा हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
गणेश चालीसा को डाउनलोड करे (Download Ganesh Chalisa in PDF, JPG and HTML): आप इस चालीसा को पीडीएफ में डाउनलोड (PDF Download), जेपीजी रूप में (Image Save) या प्रिंट (Print) भी कर सकते हैं। इस चालीसा को सेव करने के लिए ऊपर दिए गए बटन पर क्लिक करें।आइए पढ़ते हैं श्री गणेश जी की चालीसा:
श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesha Chalisa in Hindi)
॥दोहा॥
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥
॥चौपाई॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥1॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥2॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥3॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥4॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥5॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥6॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥7॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥8॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥9॥

॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥



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Friday, December 22, 2017

संकटमोचन हनुमानाष्टक

संकटमोचन हनुमानाष्टक
 
हनुमान जी हिन्दू धर्म के भगवान है। हनुमान जी अपने भक्तों के कष्ट क्षण में दूर कर देते है इसलिए इन्हें संकटमोचन के नाम से जाना जाता है। यह हनुमान जी का आठ दोहा का मंत्र है। इस मंत्र में हनुमान जी की शक्तियों का बखान किया गया है।
हनुमानाष्टक की शुरूआत हनुमान जी के बचपन की एक घटना से होती है जिसमें वह सूर्य को फल समझ खा जाते हैं। इसके बाद अन्य सभी घटनाओं का वर्णन है जो हनुमान जी से संबंधित थे।
संकटमोचन हनुमानाष्टक (Sankatmochan Hanumanashtak)
बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अँधियारो I
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहू सो जात न टारो II
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि, जात महा प्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महा मुनि श्राप दियो तब, चाहिये कौन बिचार बिचारो II
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
अंगद के संग लेन गये सिया, खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जो, बिना सुधि लाये यहाँ पगु धारौ II
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब, लाये सिया सुधि प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण त्रास दई सिया को तब, राक्षसि सों कहि शोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनी चर मारो II
चाहत सिया अशोक सों आगि सु, दें प्रभु मुद्रिका शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
बाण लाग्यो उर लक्ष्मण के तब, प्राण तज्यो सुत रावण मारो I
ले गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सो वीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई तब, लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर दारो I
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो II
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पातळ सिधारो I
देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो II
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावण सैन्य समेत संघारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुम सों नहिं जात है टारो II
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
दोहा
लाल देह लाली लसे ,अरु धरि लाल लंगूर I
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर II

इन्हें भी पढ़ेंः-

श्री हनुमान चालीसाऔर हनुमानजी के मंत्र

श्री हनुमान चालीसा
हिन्दू धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस का परिचायक माना जाता है। शिवजी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंग बली, पवनपुत्र, मारुती नंदन, केसरी आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी अजर-अमर हैं।
हनुमान जी को प्रतिदिन याद करने और उनके मंत्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं। हनुमान जी की साधना में तुलसीदास रचित "हनुमान चालीसा" (Hanuman Chalisa)को बेहद प्रभावशाली माना जाता है।
हनुमान चालीसा को डाउनलोड करे आप इस चालीसा को पीडीएफ में डाउनलोड, जेपीजी रूप में या प्रिंट भी कर सकते हैं। इस चालीसा को सेव करने के लिए ऊपर दिए गए बटन पर क्लिक करें।
श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa in Hindi)
।।दोहा।।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार |
बरनौ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के , सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||
।।चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर |
रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ||2||
महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी |
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कान्हन कुण्डल कुंचित केसा ||4|
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे कान्धे मूंज जनेऊ साजे |
शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन ||6|
विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर |
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया ||8||
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा |
भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज सवारे ||10||
लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये |
रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई ||12||
सहस बदन तुम्हरो जस गावें अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें |
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ||14||
जम कुबेर दिगपाल कहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते |
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा ||16||
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना |
जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु ||18|
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं |
दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ||20||
राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे |
सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहें को डरना ||22||
आपन तेज सम्हारो आपे तीनों लोक हाँक ते काँपे |
भूत पिशाच निकट नहीं आवें महाबीर जब नाम सुनावें ||24||
नासे रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा |
संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें ||26||
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा |
और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे ||28||
चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे ||30||
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ||32||
तुम्हरे भजन राम को पावें जनम जनम के दुख बिसरावें |
अन्त काल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ||34||
और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई |
संकट कटे मिटे सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बलबीरा ||36||
जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं |
जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई ||38||
जो यह पाठ पढे हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा |
तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ||40||
।।दोहा।।
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप |
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ||
हनुमान चालीसा का लाभ (Benefits of Hanuman Chalisa)
हनुमान जी को प्रतिदिन याद करने और उनके मंत्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं। शनि साढ़ेसाती या महादशा से पीड़ित जातकों के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना लाभदायक माना जाता है। साथ ही जिन लोगों की कुंडली में मांगलिक दोष हो उनके लिए भी हनुमान चालीसा का पाठ लाभदायक समझा जाता है। 



हनुमानजी के मंत्र (Lord Hanuman Mantra in Hindi)
डर या भूत आदि की समस्या दूर करने वाले मंत्र (Hanuman Mantra to Overcome Fear)
प्रेत आदि की बाधा निवृति हेतु हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना  चाहिए:
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय
नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।
प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।
Preta aadi ki badha nivriti hetu hanuman ji ke is mantra ka jaap karna chahiye.
Om Dakshinamukhaya paccamukha hanumate karalabadanaya
narasinhaya ham him hom haum hah sakalabhitapretadamanaya svahah
Pranavaum pavanakumara khala bana pavaka gyanadhana.
Jasu hirdaya agara basinha rama sara capa ghara
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शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा।
Satruov se mukti pane ke liye hanuman ji ke is mantra ka jaap karna chahiye.
Purvakapimukhaya paccamukha hanumate tam tam tam tam tam sakala satru sahanranaya svaha.
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अपनी रक्षा और यथेष्ट लाभ हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए
अज्जनागर्भ सम्भूत कपीन्द्र सचिवोत्तम।
रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा।।
Apani raksha aur yathestha labha hetu is mantra ka jaap karna chahiye.
ajjanagarbha sambhuta kapindra sacivottama.
Ramapriya namastubhyam hanuman raksa sarvada.
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मुकदमे में विजय प्राप्ती के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए
पवन तनय बल पवन समाना।
बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
Mukadame me vijaya prapti ke liye is mantra ka jaap karna chahiye.
Pavana tanaya bala pavana samana
Budhi bibeka bigyana nidhana
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धन और स्मृद्धि के लिए हनुमान मंत्र (Hanuman Mantra for Money in Hindi)
धन- सम्पत्ति प्राप्ति हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन ।
शत्रून संहर मां रक्षा श्रियं दापय मे प्रभो।।
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Dukhon ke nivarana evam dhan- sampatti ki prapti hetu is mantra ka jaap karna chahiye.
Markatesa mahotsaha sarvasoka vinasana.
Satruna sanhara mam raksha Sriyam dapaya me prabhu.
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किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ॐ हनुमते नमः
Kisi bhi karya ki siddhi ke liye is mantra ka jaap kare
Om Hanumate namah.
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अच्छी सेहत के लिए हनुमान मंत्र (Hanuman Mantra for Good Health in Hindi)
सभी प्रकार के रोग और पीड़ा से मुक्ति पाने हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
हनुमान अंगद रन गाजे।
हांके सुनकृत रजनीचर भाजे।।
नासे रोग हरैं सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा।।
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Sbhi prkar ke rog aur pira se mukti pane hetu is mantra ka jaap karna chahiye.
Hanumana angada rana gaje.
Hanke sunakrta rajanicara bhaje.
Nase roga hare sab pira.
Jo sumirai hanumata bal bira.
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हनुमान जी को प्रसन्न करने हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए
सुमिरि पवन सुत पावन नामू।
अपने बस करि राखे रामू।।
Hanumana ji ko prasanna karane hetu is mantra ka jaap karna chahiye.
Sumiri pavana suta pavana namu.
Apane basa kari rakhe ramu.
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हनुमानजी की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उनसे क्षमा-प्रार्थना करना चाहिए-
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं कपीश्वर |
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे ||
Hanumanji ki pooja ke dauran is mantra ko padhte huye unse kshama-prarthana karna chahiye-
Mantraheenam Kriyaheenam Bhaktiheenam Kapishwar |
Yatpoojitam Maya Dev! Paripoorn Tadastu Me ||
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हनुमानजी की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए सुवर्णपुष्प समर्पण करना चाहिए-
वायुपुत्र ! नमस्तुभ्यं पुष्पं सौवर्णकं प्रियम् |
पूजयिष्यामि ते मूर्ध्नि नवरत्न - समुज्जलम् ||
Hanumanji ki pooja me is mantra ko padhte huye Suvarnpushp samarpan karna chahiye-
Vaayuputra ! Namastubhyam Pushpam Sauvarnakam Priyam |
Poojayishyaami Te Moordhni Navratn - Samujjalam ||
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हनुमानजी की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें ऋतुफल समर्पण करना चाहिए-
फ़लं नानाविधं स्वादु पक्वं शुद्धं सुशोभितम् |
समर्पितं मया देव गृह्यतां कपिनायक ||
Hanumanji ki pooja me is mantra ko padhte huye unhe Ritufal samarpan karna chahiye-
Falam Naanaavidham Swaadu Pakvam Shuddham Sushobhitam |
Samarpitam Mayaa Dev Grihyataam Kapinaayak ||
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इस मंत्र को पढ़ते हुए पवनपुत्र हनुमानजी को सिन्दूर समर्पण करना चाहिए-
दिव्यनागसमुद्भुतं सर्वमंगलारकम् |
तैलाभ्यंगयिष्यामि सिन्दूरं गृह्यतां प्रभो ||
Is mantra ko padhte huye Pavanputra Hanumanji ko sindoor samarpan karna chahiye-
Divyanaagasamudbhutam Sarvmangalaarkam |
Tailaabhyamgayishyaami Sindooram Grihyataam Prabho ||
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अंजनीपुत्र हनुमान की पूजा करते समय इस मंत्र के द्वारा उन्हें पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए-
नीलोत्पलैः कोकनदैः कह्लारैः कमलैरपि |
कुमुदैः पुण्डरीकैस्त्वां पूजयामि कपीश्वर ||
Anjaneeputra Hanuman ki pooja karte samay is mantra ke dwara unhe pushpmala samarpan karna chahiye-
Neelotpalaih Kokanadaih Kahlaaraih Kamalairapi |
Kumudaih Pundareekaistvaam Poojayaami Kapeeshwar ||
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हनुमानजी की पूजा करते समय इस मंत्र के द्वारा उन्हें पंचामृत समर्पण करना चाहिए-
मध्वाज्य - क्षीर - दधिभिः सगुडैर्मन्त्रसन्युतैः |
पन्चामृतैः पृथक् स्नानैः सिन्चामि त्वां कपीश्वर ||
Hanumanji ki pooja karte samay is mantra ke dwara unhe Panchamrit samarpan karna chahiye-
Madhvaajya - Ksheer - Dadhibhih Sagudairmantrasanyutaih |
Panchamritaih Prithak Snaanaih Sinchaami Tvaam Kapeeshwar ||
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मारुतिनंदन की पूजा में इस मंत्र के द्वारा उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए-
कुसुमा-क्षत-सम्मिश्रं गृह्यतां कपिपुन्गव |
दास्यामि ते अन्जनीपुत्र | स्वमर्घ्यं रत्नसंयुतम् ||
Marootinandan ki pooja me is mantra ke dwara unhe arghya samarpan karna chahiye-
Kusuma-Kshta-Sammishram Grihyataam Kapipungav |
Daasyaami Te Anjaneeputra | Svamarghyam Ratnasanyutam ||
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इस मंत्र को पढ़ते हुए अंजनीपुत्र हनुमानजी को पाद्य समर्पण करना चाहिए-
सुवर्णकलशानीतं सुष्ठु वासितमादरात् |
पाद्योः पाद्यमनघं प्रतिफ़गृह्ण प्रसीद मे ||
Is mantra ko padhte huye Anjaniputra Hanumanji ko padya samarpan karna chahiye-
Suvarnkalashaaneetam Sushthu Vaasitamaadaraat |
Padyoh Padyamanagham Pratifagrihna Praseed Me ||
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हनुमानजी की पूजा के दौरान इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए-
नवरत्नमयं दिव्यं चतुरस्त्रमनुत्तमम् |
सौवर्णमासनं तुभ्यं कल्पये कपिनायक ||
Hanumanji ki pooja ke dauran is mantra ko padhte huye unhe aasan samarpan karna chahiye-
Navratnmayam Divyam Chaturstramanuttamam |
Sauvarnamaasanam Tubhyam Kalpaye Kapinaayak ||
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इस मंत्र को पढ़ते हुए पवनपुत्र हनुमानजी का आवाहन करना चाहिए-
श्रीरामचरणाम्भोज-युगल-स्थिरमानसम् |
आवाहयामि वरदं हनुमन्तमभीष्टदम् ||
Is mantra ko padhte huye Pavanputra Hanumanji ka aavahan karna chahiye-
Shriramcharanaambhoj-Yugal-Sthiramaanasam |
Aavaahayaami Vardam Hanumantambheeshtadam ||

जानिए कैसे पड़ा माता शक्ति का नाम दुर्गा?

Mata Durga Hindi Story  : पुरातन काल में दुर्गम नामक दैत्य हुआ। उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर सभी वेदों को अपने वश में कर लिया जिससे देवताओं का बल क्षीण हो गया। तब दुर्गम ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। तब देवताओं को देवी भगवती का स्मरण हुआ। देवताओं ने शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ तथा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली शक्ति का आह्वान किया।
देवताओं के आह्वान पर देवी प्रकट हुईं। उन्होंने देवताओं से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। सभी देवताओं ने एक स्वर में बताया कि दुर्गम नामक दैत्य ने सभी वेद तथा स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया है तथा हमें अनेक यातनाएं दी हैं। आप उसका वध कर दीजिए। देवताओं की बात सुनकर देवी ने उन्हें दुर्गम का वध करने का आश्वासन दिया।
यह बात जब दैत्यों का राजा दुर्गम को पता चली तो उसने देवताओं पर पुन: आक्रमण कर दिया। तब माता भगवती ने देवताओं की रक्षा की तथा दुर्गम की सेना का संहार कर दिया। सेना का संहार होते देख दुर्गम स्वयं युद्ध करने आया। तब माता भगवती ने काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला आदि कई सहायक शक्तियों का आह्वान कर उन्हें भी युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। भयंकर युद्ध में भगवती ने दुर्गम का वध कर दिया। दुर्गम नामक दैत्य का वध करने के कारण भी भगवती का नाम दुर्गा के नाम से भी विख्यात हुआ।

अमीर हो कर भी गरीब है तिरुपति बालाजी

Tirupati balaji story in Hindi : अगर धन के आधार पर देखा जाए तो वर्तमान में सबसे धनवान भगवान बालाजी हैं। एक आंकड़े के अनुसार मंद‌िर ट्रस्ट के खजाने में 50 हजार करोड़ से अध‌िक की संपत्त‌ि है। लेक‌िन इतने धनवान होने पर भी बालाजी सभी देवताओं से गरीब ही हैं
धनवान होकर भी गरीब हैं बालाजी
आप सोच रहे होंगे क‌ि इतना पैसा होने पर भी भगवान गरीब कैसे हो सकते हैं। और दूसरा सवाल यह भी आपके मन में उठ सकता है क‌ि जो सबकी मनोकामना पूरी करता है वह खुद कैसे गरीब हो सकता है।

लेक‌िन त‌िरुपत‌ि बालाजी के बारे में ऐसी प्राचीन कथा है ज‌िसके अनुसार बालाजी कल‌ियुग के अंत तक कर्ज में रहेंगे। बालाजी के ऊपर जो कर्ज है उसी कर्ज को चुकाने के ल‌िए यहां भक्त सोना और बहुमूल्य धातु एवं धन दान करते हैं।
शास्‍त्रों के अनुसार कर्ज में डूबे व्यक्त‌ि के पास क‌ितना भी धन हो वह गरीब ही होता है। इस न‌ियम के अनुसार यह माना जाता है क‌ि धनवान होकर भी गरीब हैं बालाजी।
आख‌िर कर्ज में क्यों डूबे हैं त‌िरुपत‌ि बालाजी
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार महर्ष‌ि भृगु बैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगन‌िद्रा में लेटे भगवान व‌िष्‍णु की छाती पर एक लात मारी। भगवान व‌िष्‍णु ने तुरंत भृगु के चरण पकड़ ल‌िए और पूछने लगे क‌ि ऋष‌िवर पैर में चोट तो नहीं लगी।

भगवान व‌िष्‍णु का इतना कहना था क‌ि भृगु ऋष‌ि ने दोनों हाथ जोड़ ल‌िए और कहने लगे प्रभु आप ही सबसे सहनशील देवता हैं इसल‌िए यज्ञ भाग के प्रमुख अध‌िकारी आप ही हैं। लेक‌िन देवी लक्ष्मी को भृगु ऋष‌ि का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और वह व‌िष्‍णु जी से नाराज हो गई। नाराजगी इस बात से थी क‌ि भगवान ने भृगु ऋष‌ि को दंड क्यों नहीं द‌िया।
नाराजगी में देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर चली गई। भगवान व‌िष्‍णु ने देवी लक्ष्मी को ढूंढना शुरु क‌िया तो पता चला क‌ि देवी ने पृथ्‍वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म ल‌िया है। भगवान व‌िष्‍णु ने भी तब अपना रुप बदला और पहुंच गए पद्मावती के पास। भगवान ने पद्मावती के सामने व‌िवाह का प्रस्ताव रखा ज‌िसे देवी ने स्वीकार कर ल‌िया।
लेक‌िन प्रश्न सामने यह आया क‌ि व‌िवाह के ल‌िए धन कहां से आएगा।
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और इस तरह धनवान होते जा रहे हैं बाला जी
व‌िष्‍णु जी ने समस्या का समाधान न‌िकालने के ल‌िए भगवान श‌िव और ब्रह्मा जी को साक्षी रखकर कुबेर से काफी धन कर्ज ल‌िया। इस कर्ज से भगवान व‌िष्‍णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती ने व‌िवाह क‌िया।
कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन द‌िया था क‌ि कल‌ियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज समाप्त होने तक वह सूद चुकाते रहेंगे। भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं ताक‌ि भगवान कर्ज मुक्त हो जाएं।
भक्तों से म‌िले दान की बदौलत आज यह मंद‌िर करीब 50 हजार करोड़ की संपत्त‌ि का माल‌िक बन चुका है।


Thursday, December 21, 2017

हरियाणा के मंदिर

हिंदी भजन Top 10 Morning Bhajans | Super Hit Hindi Devotional Songs

गुरु साहिबान,Gurdwaras

भक्त व संत

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Ranakpur Temple - Udaipur

रणकपुर मंदिर
उदयपुर और जोधपुर के बीच पाली डिस्ट्रिक्ट में गांव रणकपुर में यह मंदिर स्थित है जिसे जैन धर्म के 5 पवित्र स्थलों में शुमार किया जाता है.
यह पूरा मंदिर हल्के सफ़ेद रंग के मार्बल से बना हुआ है. जिसमें 1400 नक्काशी किये हुए पिलर लगे हुए हैं. यह मंदिर केवल प्राक्रतिक रौशनी का ही इस्तेमाल करता है, जिससे आध्यात्म में मदद मिलती है.



Ranakpur Temples are acclaimed world-wide for their intricate and superb architectural style. These temples form one of the five major pilgrimages of the Jains. Located in village of Ranakpur near Sadri town in the Pali district of Rajasthan, Ranakpur temple lies at a distance of 95 kms in the north of Udaipur city. The temple is easily accessible from the city of Udaipur as regular buses are easily available. Built in the 15th century, Ranakpur temples are known for being the largest and most important temples of the Jain cult. 

The temple is said to have been built by Seth Dharna Sah (a Jain businessman) with the aid of Rana Kumbha, who ruled Mewar in the 15th century. Ranakpur got its name after the name of the Rajput Monarch and likewise the temples. The temple complex is positioned in an isolated valley on the western side of the Aravalli Range. The Jain Temples of Ranakpur are certainly creditable for their splendid architecture. This temple is wholly constructed in light colored marble and comprises a basement covering an area of 48000 sq feet. There are more than 1400 exquisitely carved pillars that support the temple. 

In the complex, there are several temples including Chaumukha temple, Parsavanath temple, Amba Mata Temple and Surya Temple. Amongst all of them, Chaumukha Temple is the most important and as the term Chaumukha suggests, this temple is four-faced. Chaumukha temple is dedicated to Lord Adinath, who is the first 'Tirthankara' of the Jains. The Temple structure is highly compound having four different doorways to get into the chambers. These chambers ultimately take you to the main hall where the image of Adinath is positioned. 

The four faced image also symbolizes the Tirthankara's quest for the four directions and ultimately the cosmos. The image is surrounded by many small shrines and domes. One more range of cells with separate roofs encircles these shrines and domes all over again. The five spires elevate above the walls and around 20 cupolas rise from roof of the pillared hall. Each spire houses a shrine and the largest shrine is the important one that addresses the central altar. The temple ceilings are festooned with foliate scrollwork and geometric patterns. 

The temple is a masterpiece of architecture and boasts of not less than four additional shrines. It has 24 pillared halls with 80 domes that are supported by 400 columns. The upper and lower parts of the domes are linked by brackets that have deities' sculptures. Above all, you would be amazed to see at a height of 45 feet engraved nymphs playing the flute in various dance postures. Each column is intricately carved and it is surprising to know that no two columns have the similar design.

Apart from this, another stunning act about these columns is that they change their color from golden to pale blue after every hour during the day. In the mandap (prayer hall), the two big bells of 108 kg each produce a harmonious sound on the movement. Chaumukha temple is formed like a Nalinigulm Vimana (heavenly aircraft) and provides this whole structure a celestial appearance. Conceivably, it is due to the intricacy of the structure that the temple took approximately 65 years to complete. 

The Temple of Parsavanath is another attraction that is worth visiting. Built in the mid 15th century, the temple is renowned for its engraved windows embellished with Jain figures. Parsavanath Temple is also known as Patriyon Ka Mandir. In close proximity to this temple, you can trace two other temples dedicated to Neminath (22nd saint) and Surya Narayan (Sun God) respectively. Here, Surya Narayan Temple has innumerable wall projections with circular structure. The sight of Lord Surya driven in his chariot of seven horses is truly pleasing. 

Ranakpur Temple was also nominated amongst the top 77 wonders, while deciding for new Seven Wonders of the World. However, number of wonders cannot be increased and some or the other would come amongst the top seven, still Ranakpur Temple is undoubtedly a wonder. If you are on a trip to Udaipur, don't miss this artistic temple that would become an unforgettable part of your beautiful memories.



गोमतेश्वर मंदिर Bahubali Gomateshwara

गोमतेश्वर मंदिर
10 वीं सदी में कर्णाटक के श्रवानाबेलागोला में बना यह मंदिर भगवान बाहुबली को समर्पित है जिन्हें गोमतेश्वर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए काफी महत्व रखता है.
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हर 12 साल बाद यहां महामस्तक अभिषेक किया जाता है, जो जैनियों के लिए एक महत्वपूर्ण त्यौहार है.





Bahubali was an Arihant and was referred to as Gomateshwara. Out of hundred sons of Rishabha, Podanpur’s king, the first Tirthankara, he was the second one as per Jainism. In the Adipurna, more information about the ten lives of Rishabha, the first Tirthankara and his two sons, Bahubali and Bharata. This Kannada text was written by Adikavi, a Jain poet in the 10th century. It is written in Champu style with an eclectic mix of verse and prose that is spread over sixteen cantos. Attaining liberation in half time cycle, he was the first human as per Digambaras.
In Shravanbelagola, Bahubali’s gigantic monolithic statue has been erected by commander Chamundaraya and the Ganga minister. The statue is perched at a height of 18 m or 60 feet on a hill. Shravanbelagola is located in the Karnataka’s Hassan district. In 10th century, this statue was built. Not only devotees and pilgrims but tourists in large numbers come here from different parts of the world in every 12 years to attend an event called “Mahamastakabhisheka”. Indian voters voted for this statue as one of the Seven Wonders of India on 5th day of August, 2007. In this marvel’s favour, 49% votes were secured.

History

In 998 AD, Chavundaraya installed the image. He was Ganga King Rachamalla Sathyavakya’ minister. There is a story behind the existence of this statue. As per Indian mythology, Bahubali was Adinatha’s son who was the first among 24 Jain teerthankars. Rishaba decided to hand over Ayodhya, his capital city to Bharata, his eldest son when he decided to go on a spiritual journey. Paudanapura, another province went to the younger son, Bahubali. By waging wars and carrying out annexing other provinces, Bharata decided to extend his empire. He became supreme commander in his time. Bahubali was not in favour of this idea as it entailed colossal lives loss and blood shedding. Even kingdom’s other wise men were not in favour of this decision. This led to a combat situation between Bahubali and Bharata. This instance was probably the first one in the history of humankind about avoiding unnecessary bloodshed and voluntary disarmament.
Different fight types- malla yuddha and drishti yuddha took place between Bharata and Bahubali. As a last resort, chakra, a lethal weapon was used. The chakra circled Bahubali and came to settle on his right side and entire assemblage was amazed.
A divine presence was felt by Bahubali and in this particular moment he decided to abandon all worldly possessions as an unsurpassed renunciation moment. For one complete year, Bahubali stood in meditation in a pose of Kayotsarga. He also left water and food. He was highly dedicated to gain complete and perfect knowledge that is the state of Kevali Arihantha. He stood in this pose for so long that anthill came into existence at his feet and his body was swirled around his body. Huge or “Gommata” and Sri Bahubali Swami or Gomateshwara Bhagwan came into existence.

Location

Located about 158 kilometers from Bangalore, Bahubali’s colossal staue came into existence at Shravanbelagola. Bahubali’s statue who was considered a Siddha was carved from a single granite block and today on a hill, this statue stands majestically. It has become a pilgrimage center and pilgrims in large numbers come here to see this gigantic statue. Saint has been shown completely nude as is the rule in the Jain custom. This statue is visible from about 30 km distance.

Structure

The statue of Gommateshwara stands tall at 58 feet height. This statue was carved out of a granite block and depicts Bahubali without clothes. A single rock was used for carving this statue. One has to climb about 614 steps to reach closer to the statue. This Gomateshwara Monolith was built according to Jain architectural style and it reflects Indian artisan’s excellent craftsmanship.
Since it is situated on a hill, one has to climb around 614 steps to reach the statue. The Monolith of Gomateshwara has been built as per the typical Jain architecture and beautifully represents the exquisite craftsmanship of the Indian artisans. Perfectly proportioned saint’s body has been sculpted with great care and a subtle calmness reflects on his face.

Festival

Mahamastakabhisheka, an event that is organized every 12 years is celebrated here. Coconut milk, curd, jiggery, bananas, poppy seeds, milk, saffron and sandalwood is used to anoint saint’s body.





विरूपक्षा टेम्पल Virupaksha Temple at Hampi

विरूपक्षा टेम्पल
7 वीं सदी में हम्पी में बना यह मंदिर आज भी अपने पूजा पाठ के लिए जाना जाता है. इसे unesco द्वारा राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जा चुका है.
यह मंदिर धार्मिक दृष्टि के अलावा पर्यटन कि दृष्टि से भी काफी महत्व रखता है.





विरुपाक्ष मन्दिर (अंग्रेज़ीVirupaksha Templeहम्पीकर्नाटक के कई आकर्षणों में से मुख्य है। 15वीं शताब्दी में निर्मित यह मन्दिर बाज़ार क्षेत्र में स्थित है। यह नगर के सबसे प्राचीन स्मारकों में से एक है। 1509 ई. में अपने अभिषेक के समय कृष्णदेव राय ने यहाँ गोपुड़ा का निर्माण करवाया था। भगवान 'शिव' को यह मन्दिर समर्पित है। विरुपाक्ष मन्दिर को 'पंपापटी' नाम से भी जाना जाता है। मन्दिर का संबंध इतिहास प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य से है।

स्थिति तथा स्थापत्य

15वीं शताब्दी में निर्मित यह मन्दिर हम्पी नगर के बाज़ार क्षेत्र में स्थित है। यह नगर के सबसे प्राचीन स्मारकों में से एक है। मन्दिर का शिखर ज़मीन से 50 मीटर ऊँचा है। मन्दिर का संबंध विजयनगर काल से है। विशाल मन्दिर के अंदर अनेक छोटे-छोटे मन्दिर हैं, जो विरुपाक्ष मन्दिर से भी प्राचीन हैं। मन्दिर के पूर्व में पत्थर का एक विशाल नंदी है, जबकि दक्षिण की ओर गणेश की विशाल प्रतिमा है। यहाँ अर्ध सिंह और अर्ध मनुष्य की देह धारण किए नृसिंह की 6.7 मीटर ऊँची मूर्ति है।[1] विरुपाक्ष मंदिर के प्रवेश द्वार का गोपुरम हेमकुटा पहाड़ियों व आसपास की अन्य पहाड़ियों पर रखी विशाल चट्टानों से घिरा है और चट्टानों का संतुलन हैरान कर देने वाला है।

गोपुड़ा का निर्माण

विश्व विरासत स्थलहम्पी के कई आकर्षणों में से विरुपाक्ष मन्दिर मुख्य है। 1509 में अपने अभिषेक के समय कृष्णदेव राय ने यहँ के गोपुड़ा का निर्माण करवाया था। विरुपाक्ष मंदिर हंपी के उन गिने-चुने मंदिरों में से है, जिनमें आज भी विधिवत पूजा होती है।
विरुपाक्ष मन्दिर का शिखर ज़मीन से 50 मीटर ऊंचा है। इस विशाल मन्दिर के अंदर अनेक छोटे-छोटे मन्दिर हैं, जो विरुपाक्ष मन्दिर से भी प्राचीन हैं। विरुपाक्ष मन्दिर विश्व विरासत स्थल की सूची में सम्मिलित है। मन्दिर को 'पंपापटी मन्दिर' भी कहा जाता है, यह हेमकुटा पहाड़ियों के निचले हिस्से में स्थित है।

किंवदंती

किंवदंती है कि भगवान विष्णु ने इस जगह को अपने रहने के लिए कुछ अधिक ही बड़ा समझा और अपने घर वापस लौट गए। विरुपाक्ष मन्दिर में भूमिगत शिव मन्दिर भी है। मन्दिर का बड़ा हिस्सा पानी के अन्दर समाहित है, इसलिए वहाँ कोई नहीं जा सकता। बाहर के हिस्से के मुक़ाबले मन्दिर के इस हिस्से का तापमान बहुत कम रहता है।


दिव्य दर्शन

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ब्रज चैरासी कोसीय परिक्रमा मार्ग पर विभिन्न पड़ाव स्थलों पर 30 जनसुविधा केन्द्रों का निर्माण

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