Tuesday, January 9, 2018

Lohri 2018: बाल गोपाल और भगवान श‍िव से जुड़ी है लोहड़ी, जानें महत्‍व





LOHRI SONGS


लोहड़ी का पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इसे मनाने की वजह भगवान श्री कृष्ण और श‍िव जी से भी जुड़ी है-

Lohri 2018: बाल गोपाल और भगवान श‍िव से जुड़ी है लोहड़ी, जानें महत्‍व
Lohri 2018 | तस्वीर साभार:  Representative Image
नई द‍िल्‍ली: 13 जनवरी को देशभर में लोहड़ी का त्‍योहार मनाया जा रहा है। यह पर्व मकर संक्रांति से एक द‍िन पहले आता है। पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है। लोहड़ी के कुछ दिन पहले ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। 
यूं तो लोहड़ी सर्दी के मौसम के जाने और फसलों से जुड़ा पर्व है लेकिन भगवान श्री कृष्ण और श‍िव जी से भी इस त्‍योहार को मनाने की कथाएं जुड़ी हैं। 
कृष्ण ने क‍िया था लोहिता का वध 
एक प्रचालित लोक कथा के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था। जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। 
सिंधी समाज भी मकर संक्रांन्ति के एक दिन पूर्व इसे 'लाल लोही' के रूप में मनाता है। 
भगवान श‍िव और सती से जुड़ी कथा 
लोहड़ी मनाने और इस दौरान आग जलाने की परंपरा की एक पौराण‍िक कथा भगवान श‍िव और सती से भी जुड़ी है। एक कथा के मुताबिक, दक्ष प्रजापति की बेटी सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है

मकर संक्रांति











उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र और आचार संहिता में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है। माघ माह में कृष्ण पंचमी को मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। आओ जानते हैं कि मकर संक्रांति के दिन कौन कौन से खास कार्य होते हैं...


1. क्यों कहते हैं मकर संक्रांति?
मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है। हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है।

2. इस दिन से सूर्य होता है उत्तरायन
चन्द्र के आधार पर माह के 2 भाग हैं- कृष्ण और शुक्ल पक्ष। इसी तरह सूर्य के आधार पर वर्ष के 2 भाग हैं- उत्तरायन और दक्षिणायन। इस दिन से सूर्य उत्तरायन हो जाता है। उत्तरायन अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। अत: यह पर्व 'उत्तरायन' के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं।

3. इस पर्व का भौगोलिक विवरण
पृथ्वी साढ़े 23 डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में 4 स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें 21 मार्च और 23 सितंबर को विषुवत रेखा, 21 जून को कर्क रेखा और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है। वास्तव में चन्द्रमा के पथ को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है। भारतीय ज्योतिष में इन 4 स्थितियों को 12 संक्रांतियों में बांटा गया है जिसमें से 4 संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति।
4. फसलें लहलहाने लगती हैं
इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं। खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं।

5. पर्व का सांस्कृतिक महत्व
मकर संक्रांति के इस पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्योहार को के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, आदि कहा जाता है। मध्यभारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायन, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।

6. तिल-गुड़ के लड्डू और पकवान
सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी लगती हैं इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न या पकवान बनाए, खाए और बांटे जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।

7. स्नान, दान, पुण्य और पूजा
माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्यागकर उनके घर गए थे इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगासागर में मेला भी लगता है। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं। इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है।

8. पतंग महोत्सव का पर्व
यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अत: उत्सव के साथ ही सेहत का भी लाभ मिलता है।

9. अच्छे दिन की शुरुआत
भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया।

10. ऐतिहासिक तथ्‍य
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है।-





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Saturday, January 6, 2018

रामायण के सात काण्ड




रामायण के सात काण्ड मानव की उन्नति के - सत्यमार्ग       





                    बालकाण्ड

              अरण्यकाण्ड
              सुंदरकाण्ड
              लंकाकाण्ड
              उत्तरकाण्ड












बालकाण्ड

बालकाण्ड में प्रभु राम के जन्म से लेकर राम-विवाह तक के घटनाक्रम आते हैं। नीचे बालकाण्ड से जुड़े घटनाक्रमों की विषय सूची दी गई है। आप जिस भी घटना के बारे में पढ़ना चाहते हैं, उसकी लिंक पर क्लिक करें।


मंगलाचरण

गुरु वंदना

ब्राह्मण-संत वंदना

खल वंदना

संत-असंत वंदना

रामरूप से जीवमात्र की वंदना

तुलसीदासजी की दीनता और राम भक्तिमयी कविता की महिमा

कवि वंदना

वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, शिव, पार्वती आदि की वंदना

श्री सीताराम-धाम-परिकर वंदना

श्री नाम वंदना और नाम महिमा

श्री रामगुण और श्री रामचरित्‌ की महिमा

मानस निर्माण की तिथि

मानस का रूपक और माहात्म्य

याज्ञवल्क्य-भरद्वाज संवाद तथा प्रयाग माहात्म्य

सती का भ्रम, श्री रामजी का ऐश्वर्य और सती का खेद

शिवजी द्वारा सती का त्याग, शिवजी की समाधि

सती का दक्ष यज्ञ में जाना

पति के अपमान से दुःखी होकर सती का योगाग्नि से जल जाना, दक्ष यज्ञ विध्वंस

पार्वती का जन्म और तपस्या

श्री रामजी का शिवजी से विवाह के लिए अनुरोध

सप्तर्षियों की परीक्षा में पार्वतीजी का महत्व

कामदेव का देवकार्य के लिए जाना और भस्म होना

रति को वरदान

देवताओं का शिवजी से ब्याह के लिए प्रार्थना करना, सप्तर्षियों का पार्वती के पास जाना

शिवजी की विचित्र बारात और विवाह की तैयारी

शिवजी का विवाह

शिव-पार्वती संवाद

अवतार के हेतु

नारद का अभिमान और माया का प्रभाव

विश्वमोहिनी का स्वयंवर, शिवगणों को तथा भगवान्‌ को शाप और नारद का मोहभंग

मनु-शतरूपा तप एवं वरदान

प्रतापभानु की कथा

रावणादिका जन्म, तपस्या और उनका ऐश्वर्य तथा अत्याचार

पृथ्वी और देवतादि की करुण पुकार

भगवान्‌ का वरदान

राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, रानियों का गर्भवती होना

श्री भगवान्‌ का प्राकट्य और बाललीला का आनंद

विश्वामित्र का राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को माँगना, ताड़का वध

विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा

अहल्या उद्धार

श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का जनकपुर में प्रवेश

श्री राम-लक्ष्मण को देखकर जनकजी की प्रेम मुग्धता

श्री राम-लक्ष्मण का जनकपुर निरीक्षण

पुष्पवाटिका-निरीक्षण, सीताजी का प्रथम दर्शन, श्री सीता-रामजी का परस्पर दर्शन

श्री सीताजी का पार्वती पूजन एवं वरदान प्राप्ति तथा राम-लक्ष्मण संवाद

श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश

श्री सीताजी का यज्ञशाला में प्रवेश

बंदीजनों द्वारा जनकप्रतिज्ञा की घोषणा, राजाओं से धनुष न उठना, जनक की निराशाजनक वाणी

श्री लक्ष्मणजी का क्रोध

धनुषभंग

जयमाला पहनाना, परशुराम का आगमन व क्रोध

श्री राम-लक्ष्मण और परशुराम-संवाद

दशरथजी के पास जनकजी का दूत भेजना, अयोध्या से बारात का प्रस्थान

बारात का जनकपुर में आना और स्वागतादि

श्री सीता-राम विवाह, विदाई

बारात का अयोध्या लौटना और अयो ध्या में आनंद

श्री रामचरित्‌ सुनने-गाने की महिमा




                                                                                                                               

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असल में कितने देवी-देवता हैं और क्यों?




असल में कितने देवी-देवता हैं और क्यों?









ऐसी मान्यता है कि हिंदू देवी-देवताओं की संख्या 33 या 36 करोड़ है। वेदों में देवताओं की संख्या 33 कोटी बताई गई है। कोटी का अर्थ प्रकार होता है जिसे लोगों ने या बताने वाले पंडित ने 33 करोड़ कर दिया। हालांकि इस पर शोध किए जाने की जरूरत है। देवताओं को इस्लाम में फरिश्ते और ईसाई धर्म में एंजेल कहते हैं। देवताओं की शक्ति और सामर्थ के बारे में वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। हालांकि प्रमुख 33 देवताओं के अलावा भी अन्य कई देवदूत हैं जिनके अलग-अलग कार्य हैं और जो मानव जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। इनमें से कई ऐसे देवता हैं ‍जो आधे पशु और आधे मानव रूप में हैं। आधे सर्प और आधे मानव रूप में हैं।> > माना जाता है कि सभी देवी और देवता धरती पर अपनी शक्ति से कहीं भी आया-जाया करते थे। यह भी मान्यता है कि संभवत: मानवों ने इन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा है और इन्हें देखकर ही इनके बारे में लिखा है। 
तीन स्थान और 33 देवता : त्रिलोक्य के देवताओं के तीन स्थान नियुक्त है:- 1.पृथ्वी 2.वायु और 3.आकाश। प्रमुख 33 देवता ये हैं:- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इंद्र व प्रजापति को मिलाकर कुल तैतीस देवी और देवता होते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा है, 12 आदित्यों में से एक विष्णु है और 11 रुद्रों में से एक शिव है। कुछ विद्वान इंद्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विन कुमारों को रखते हैं। उक्त सभी देवताओं को परमेश्वर ने अलग-अलग कार्य सौंप रखे हैं।



*8 वसु : आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष।
*12 आदित्य : अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु।
*11 रुद्र : मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज ये 11 रुद्र देव हैं। इनके पुराणों में अलग अलग नाम मिलते हैं। 

*2 अश्विनी कुमार : अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के दो पुत्र हैं। ये आयुर्वेद के आदि आचार्य माने जाते हैं 






1.आकाश के देवता अर्थात स्व: (स्वर्ग):- सूर्य, वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, अपांनपात, सविता, त्रिप, विंवस्वत, आदिंत्यगण, अश्विनद्वय आदि।

2.
अंतरिक्ष के देवता अर्थात भूव: (अंतरिक्ष):- पर्जन्य, वायु, इंद्र, मरुत, रुद्र, मातरिश्वन्, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य।

3.पृथ्वी के देवता अर्थात भू: (धरती):- पृथ्वी, उषा, अग्नि, सोम, बृहस्पति, नद‍ियां आदि।

अज एकपाद' और 'अहितर्बुध्न्य' दोनों आधे पशु और आधे मानवरूप हैं। मरुतों की माता की 'चितकबरी गाय' है। एक इन्द्र की 'वृषभ' (बैल) के समान था।राजा बली भी इंद्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इंद्रपद हासिल कर लिया था। इसके अलावा विश्वदेव, आर्यमन, तथा 'ऋत' नाम के भी देवता हैं। अर्यमनन पित्रों के देवता हैं, तो ऋत नैतिक व्यवस्था को कायम रखने वाले देवता।
वेदों में हमें बहुत से देवताओं की स्तुति और प्रार्थना के मंत्र मिलते हैं। इनमें मुख्य-मुख्य देवता ये हैं: अगले पन्ने पर..





प्राकृतिक शक्तियां : अग्नि, वायु, इंद्र, वरुण, मित्र, मरुत, त्वष्टा, सोम, ऋभुः, द्यौः, पृथ्वी, सूर्य (आदित्य), बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, पर्जन्य, धेनु, पूषा, आपः, सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु, त्वष्टा, श्रद्धा आदि। 

दिव्य शक्तियां : ब्रह्मा (प्रजापति), विष्णु (नारायण), शिव (रुद्र), अश्विनीकुमार, 12 आदित्य (इसमें से एक विष्णु है), यम, पितृ (अर्यमा), मृत्यु, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, कश्यप, विश्वकर्मा, गायत्री, सावित्री, सती, सरस्वती, लक्ष्मी, आत्मा, बृहस्पति, शुक्राचार्य आदि।




प्राकृतिक शक्तियां : अग्नि, वायु, इंद्र, वरुण, मित्र, मरुत, त्वष्टा, सोम, ऋभुः, द्यौः, पृथ्वी, सूर्य (आदित्य), बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, पर्जन्य, धेनु, पूषा, आपः, सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु, त्वष्टा, श्रद्धा आदि। 

दिव्य शक्तियां : ब्रह्मा (प्रजापति), विष्णु (नारायण), शिव (रुद्र), अश्विनीकुमार, 12 आदित्य (इसमें से एक विष्णु है), यम, पितृ (अर्यमा), मृत्यु, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, कश्यप, विश्वकर्मा, गायत्री, सावित्री, सती, सरस्वती, लक्ष्मी, आत्मा, बृहस्पति, शुक्राचार्य आदि।





गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों को 24 देवताओं संबंधित माना गया है। इस महामंत्र को 24 देवताओं का एवं संघ, समुच्चय या संयुक्त परिवार कह सकते हैं। इस मंत्र के जाप से 24 देवता जाग्रत हो उठते हैं।

गायत्री के 24 अक्षरों में विद्यमान 24 देवताओं के नाम:-
1. अग्नि
2. प्रजापति
3. चन्द्रमा
4. ईशान
5. सविता
6. आदित्य
7. बृहस्पति
8. मित्रावरुण
9. भग
10. अर्यमा11. गणेश
12. त्वष्टा
13. पूषा
14. इन्द्राग्नि
15. वायु
16. वामदेव
17. मैत्रावरूण
18. विश्वेदेवा
19. मातृक
20. विष्णु
21. वसुगण
22. रूद्रगण
23. कुबेर24. अश्विनीकुमार।

गायत्री ब्रह्मकल्प में देवताओं के नामों का उल्लेख इस तरह से किया गया है:-
1-अग्नि, 2-वायु, 3-सूर्य, 4-कुबेर, 5-यम, 6-वरुण, 7-बृहस्पति, 8-पर्जन्य, 9-इन्द्र, 10-गन्धर्व, 11-प्रोष्ठ, 12-मित्रावरूण, 13-त्वष्टा, 14-वासव, 15-मरूत, 16-सोम, 17-अंगिरा, 18-विश्वेदेवा, 19-अश्विनीकुमार, 20-पूषा, 21-रूद्र, 22-विद्युत, 23-ब्रह्म, 24-अदिति ।





33 देवी और देवताओं के कुल के अन्य बहुत से देवी-देवता हैं: सभी की संख्या मिलकर भी 33 करोड़ नहीं होती, लाख भी नहीं होती और हजार भी नहीं। वर्तमान में इनकी पूजा होती है।

*शिव-सती : सती ही पार्वती है और वहीं दुर्गा है। उसी के नौ रूप हैं। वही दस महाविद्या है। शिव ही रुद्र हैं और हनुमानजी जैसे उनके कई अंशावतार भी हैं।

*विष्णु-लक्ष्मी : विष्णु के 24 अवतार हैं। वहीं राम है और वही कृष्ण भी। बुद्ध भी वही है और नर-नारायण भी वही है। विष्णु जिस शेषनाग पर सोते हैं वही नाग देवता भिन्न-भिन्न रूपों में अवतार लेते हैं। लक्ष्मण और बलराम उन्हीं के अवतार हैं।
*ब्रह्मा-सरस्वती : ब्रह्मा को प्रजापति कहा जाता है। उनके मानसपुत्रों के पुत्रों में कश्यप ऋषि हुए जिनकी कई पत्नियां थी। उन्हीं से इस धरती पर पशु, पक्षी और नर-वानर आदि प्रजातियों का जन्म हुआ। चूंकि वह हमारे जन्मदाता हैं इसलिए ब्रह्मा को प्रजापिता भी कहा जाता है। 

निष्कर्ष : आपने देखा की 12 आदित्यों में से ही एक विष्णु और 11 रुद्रों में से ही एक शिव और ब्रह्मा को ही प्राजापति कहा गया है। 8 वसु भी दक्षकन्या वसु के पुत्र थे जिनके पिता कष्यप ऋषि थे और 11 रुद्रों के ‍पिता भी कश्यप ऋषि थे। रुद्रों की माता का नाम सुरभि था

Friday, January 5, 2018

दिव्य दर्शन



 दिव्य दर्शन





Hindu temple is a symbolic house, seat and body of god. It is a structure designed to bring human beings and gods together, using symbolism to express the ideas and beliefs of Hinduism. The symbolism and structure of a Hindu temple are rooted in Vedic traditions, deploying circles and squares. A temple incorporates 





आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व अखंड भारत में कई विशालकाय और चमत्कारिक वास्तु के अद्भुत मंदिरों का निर्माण हुआ। उनमें से कुछ मंदिर आज भी उसी अवस्था में मौजूद हैं तो कुछ अब खंडहर बन चुके हैं और अधिकतर का मुगलकाल में अस्तित्व मिटा दिया गया।




















India has been praised by some of the great people who have lived on the Earth. The evidence of Indian civilization can be traced back to thousands of years. No other place can vouch for the sort of diversity, which fills every nook and cranny of this incredible country. The various religions, languages, dialects, traditions and customs provide many facets of the majestic country called India.
The geographic land of India has several marks of faith spread all across its length and breadth. Certain structures have several centuries of devotion backing them, granting more authenticity and reverence.


India has two million gods, and worships them all. In religion all other countries are paupers; India is the only millionaire.” – Mark Twain (American author)
Indian religions, especially Hindu faith, offer numerous Gods and Goddesses to seek blessings from. Below is a list of 30 famous pilgrimage places in India, which stand gloriously, pouring blessings over the mankind:
in indian here is a big chin of temples in whole over india here people here big astha of godes here different types of people and worships metod of godes are diffrent 
1. Badrinath Temple
2. The Konark Sun Temple
3. Brihadeeswara Temple
4. Somnath Temple
5. Kedarnath Temple
6. Sanchi Stupa
7. Ramanathaswamy (Rameshwaram) Temple
8. Vaishno Devi Mandir
9. Siddhivinayak Temple
10. Gangotri Temple
11. Golden Temple
12. Kashi Vishwanath Temple
13. Lord Jagannath Temple
14. Yamunotri Temple
15. Meenakshi Temple
16. Amarnath Cave Temple
17. Lingaraja Temple
18. Tirupati Balaji
19. Kanchipuram Temples
20. Khajuraho Temple
21. Virupaksha Temple
22. Akshardham Temple
23. Shri Digambar Jain Lal Mandir
24. Gomateshwara Temple
25. Ranakpur Temple
26. Shirdi Sai Baba Temple
27. Sree Padmanabhaswamy Temple
28. Dwarkadhish Temple
29. Laxminarayan Temple






दिव्य दर्शन

ब्रज चैरासी कोसीय परिक्रमा मार्ग पर विभिन्न पड़ाव स्थलों पर 30 जनसुविधा केन्द्रों का निर्माण

  प्रस्तावना ब्रज क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण की जन्म व क्रीड़ा स्थली होने के कारण पर्यटन की दृष्टि से विश्व विख्यात है। यहाँ ...